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मेरे ब्लॉग पर हर एक पुराण(वेद ,उपनिषद आदि भी ) का सार दिया जायेगा ,मेरे इस कार्य में श्री भगवन ही मेरे सहायक हैं।
परम पुरुष श्री रामचंद्र जी के चरणकमलों में मेरा प्रणाम। श्री ब्रह्मा जी ,श्री विष्णु जी ,श्री शिव जी में क्रमश: रजोगुण ,सत्वगुण तथा तमोगुण हैं। भगवन सदाशिव जो शिव लोक में निवास करते हैं गुणातीत कहे गए हैं प्रमाण -शिवपुराण। इसी प्रकार श्री देवीय पुराण में माँ जगदम्बा भी गुणातीत कही गयी है ,अर्थात उनमें दिव्य गुण हैं और वह देवी माँ कोटि कोटि संसारों की स्वामिनी है , दिव्य मणिद्वीप लोक में रहती हैं। इसके अलाबा ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार श्री गोविन्द जी भी गुणातीत है और यह भी कोटि -२ ब्रह्माण्डों के स्वामी हैं। भगवन श्रीकृष्ण गोलोक धाम में रहते हैं ,उनका यह लोक त्रिपाद विभूति के अंतर्गत है तथा इस त्रिपाद विभूति में अनंत दिव्य लोक हैं।
पद्म पुराण में भगवन शिव जी ने माँ शिवा देवी को जो ज्ञान दिया है , वह संक्षिप्त में इस प्रकार है -"मूल परमात्मा श्री राम नारायण साकेत नगरी के रहवासी हैं और यह साकेत नगरी कोटि -२ ब्रह्मांडो से ऊपर तथा विरजा नदी के अति परे वैकुण्ठ लोक के बीचों बीच मौजूद है। प्रकृति के तीन गुण हैं (रज ,तम तथा सतगुण )
प्रकृति में ही अनंत ब्रह्माण्ड स्थित हैं ,विरजा नदी के नीचे की ओर कोटि -२ ब्रह्मांड है तथा उससे ऊपर अनंत दिव्य लोक हैं। माया की गति विरजा से नीचे ही है ,उससे ऊपर भगवन की त्रिपाद विभूति है ,जिसमे कोटि कोटि दिव्य लोक हैं। इसी त्रिपाद विभूति में गोलोके ,साकेत,मणिद्वीप आदि परम धाम हैं।
साकेत नगरी में कोटि-२ महल- अमहल बने हैं (मेरे श्रीहरि लेख में साकेत का विस्तार से वर्णन है )
श्री राम नारायण(उदासीन ,निष्क्रिय ,सगुण -निर्गुण से परे ,निराकार -साकार से परे ,दिव्य महापुरुष ) प्रभु की महिमा को श्री शुक संहिता ,सदाशिव संहिता तथा वेदसार उपनिषद आदि ग्रन्थों में विस्तार से बताया गया है। ये प्रभु साकेत छोड़कर कभी नहीं जाते ,साकेत में बने रहते है। माँ दुर्गा जी(मणिद्वीप निवासिनी ), भगवन श्रीकृष्ण(राम नारायण प्रभु के ही रूप हैं ) तथा शिव जी (शिवलोक ) सभी इन्ही के स्वरुप हैं। यह परमात्मा वेदों ,उपनिषदों और पुराणों में तात्पर्य रूप से वर्णित है. श्री भगवन को ही उपनिषदों में तामस अंधकार से परे दिव्य ज्योतिर्मय महापुरुष बतलाया गया है."
टिप्पणियाँ
नाम रूप परकाश लय, पाय जाय जो कोय ।
ताको यह पदवी मिलै, बड़ी मोक्ष यह होय ॥१॥
नाम रूप परकाश लय, चारिउ हरि के अंग ।
पूरन रूप बनै वही, होय न तनकौ भंग ॥२॥
प्रतिमा ज्यों की त्यों रहै, राम श्याम सम जान ।
है सब से सोई भला, देखन में तौ आन ॥३॥
चिन्ह अमिट होबैं नहीं, कह कबीर लेव जान ।
सन्त हंस देखत अहैं, धरि के ध्यान निशान ॥४॥
जैसे योगी ध्यान करि, पहुँचि जाय छिन माहिं ।
वैसे जावैं मुक्त जन, जानि लेव मन माहिं ॥५॥
उनको स्वप्न समान हो, जानि न पावै अन्त ।
ऐसी लीला भक्त हित, धन्य धन्य भगवन्त ॥६॥
ग्रन्थकारों ने उस सर्वोच्च को इंगित करते हुए अपनी अपनी रुचि के अनुसार नाम प्रदान किये है। यह उनका व्यक्तिगत मामला है। और आप उसे किस नाम रूप से जानना चाहते हो वह आपका व्यक्तिगत मामला है। सर्व सत्य यही है कि परमपिता परमात्मा और परम दयामयी माता है और वह सरवोच्च है।
आपके लेख के लिए धन्यबाद