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जिस ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्षों तक तप किया,वही दिव्य ज्ञान भक्ति-सागर ब्लॉग पर वर्णित है। थोड़े से शब्दों में तत्व ज्ञान आठ चक्रों और नवद्वारों से युक्त, अपने आनन्द स्वरूप वालों की, किसी से युद्ध के द्वारा विजय न की जाने वाली (अयोध्या) पुरी है । उसमें तेज स्वरूप कोश सुख स्वरूप है, जो ज्योति से ढका हुआ है। (अथर्ववेद १०/२/३१) वशिष्ट संहित- अयोध्या नगरी नित्या सच्चिदानंद। यस्यांश अंशेंन वैकुंठा गोकलोकादी प्रतिष्ठत:।। तारक ब्रह्म ही मूल परमेश्वर, दिव्य अयोध्या उनका घर।