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भविष्य पुराण में व्यासशिष्य सुमन्तु मुनि तथा पाण्डव वंशी राजा शतानीक का संवाद है
इस पुराण के अनुसार-(ब्राह्म पर्व)
पूर्वकाल में यह सारा संसार अंधकार से व्याप्त था,कोई पदार्थ दृष्टिगत नहीं होता था,अविज्ञय था,अतर्क्य था और प्रसुप्त सा था।उस समय सूक्ष्म अतीद्रिय और सर्वभूतमय उस परब्रह्म परमात्मा भगवान भास्कर ने अपने शरीर से नानाविध सृष्टि करने की इच्छा की और सबसे पहले परमात्मा ने
जल को उत्पन्न किया तथा उसमें अपने वीर्य रुप शक्ति का आधान किया।इससे देवता ,असुर,मनुष्य आदि सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ।वह वीर्य जल में गिरने से अत्यन्त प्रकाशमान सुवर्ण अण्ड उत्पन्न हुआ।उस अण्ड के मध्य ब्रह्मा जी उत्पन्न हुऐ।
नर(भगवान)से जल की उत्पत्ति हूई,इसलिऐ जल को नार कहते हैं।वह नार जिसका पहले अयन हुआ,उसे नारायण कहते हैं।वे सदसद्रूप,नित्यकारण और अव्यक्त हैं,इनसे जिस पुरुष विशेष की सृष्टि हुऐ ,उन्हें ब्रह्मा जी कहते हैं।
ब्रह्मा जी ने दीर्घकाल तक तपस्या की और उस अण्ड के दो भाग कर दिऐ।एक भाग से भूमि और दूसरे भाग से आकाश की रचना की।मध्य मे स्वर्ग ,आठों दिशाऐं,वरुण का निवास समुद्र बनाया।फिर महद आदि तत्व तथा सभी प्राणियों की रचना की।
परमात्मा ने सर्वप्रथम ने आकाश को उत्पन्न कियाऔर फिर क्रम से वायु,अग्नि, जल और पृथ्वी-इन तत्वों की रचना की। सृष्टि के आदि मे ही ब्रह्मा जी ने उन सबके नाम और कर्म (वेद के अनुसार )निर्धारित कर दिऐ।
ब्रह्मा जी के मुख से चारों वेद प्रकट हुऐ।पूर्व मुख से ऋग्वेद प्रकट हुआ जिसे वशिष्ट ने ग्रहण किया,
दक्षिण मुख से यजुर्वेद को याज्ञवल्क्य ने ,पश्चिम मुखे प्रकट सामवेद को गोतम ऋषि ने और उत्तरमुख से प्रकट अथर्वेद को लोकपूजित शौनक मुनि ने ग्रहण किया।ब्रह्मा जी के पंचम मुख से इतिहास,पुराण आदि शास्त्र प्रकट हुऐ।
इसके बाद उन्होंने मनु और शतरुपा को उत्पन्न किया और फिर विराट पुरुष की सृष्टि की ।इस पुरुष ने तपस्या की और दस ऋषियों (प्रजापति)को उत्पन्न किया,उनके नाम इस प्रकार हैं-
नारद,भृगू,वशिष्ट,प्रचेता,पुलह,क्रतु,पुलस्त्य,अत्रि,अंगिरा और मारीचि
इसके बाद श्री ब्रह्मा जी ने अन्य ऋषि ,छोटे बडे़ सभी जीव,ग्रह ,उपग्रह,नक्षत्र ,उल्का पिण्ड आदि सभी की सृष्टि की।इस प्रकार से उन भुवन भास्कर ने सारु त्रिलोकी की रचना की।
जब वह परमात्मा निद्रा का आश्रय ग्रहणकर शयन करता है
,तब यह संसार उसमे लीन हो जाता है और जब जागता है तब सब सृष्टि उत्पन्न होती है।और समस्त जीव पूर्वकर्मानुसार अपने अपने कर्मों में प्रवृत हो जाते हैं।वह अव्यय परमात्मा जाग्रत और निद्रा अवस्था द्वारा बार-२ जगत को उत्पन्न और नष्ट करता रहता है।
परमेश्वर कल्प के प्रारम्भ में सृष्टि और कल्प के अन्त में प्रलय करते हैं।।इस कारण उनके दिन में सृष्टि और रात्रि में प्रलय होती है।
कालगणना की चर्चा फिर कभी।।
इस पुराण के अनुसार-(ब्राह्म पर्व)
पूर्वकाल में यह सारा संसार अंधकार से व्याप्त था,कोई पदार्थ दृष्टिगत नहीं होता था,अविज्ञय था,अतर्क्य था और प्रसुप्त सा था।उस समय सूक्ष्म अतीद्रिय और सर्वभूतमय उस परब्रह्म परमात्मा भगवान भास्कर ने अपने शरीर से नानाविध सृष्टि करने की इच्छा की और सबसे पहले परमात्मा ने
जल को उत्पन्न किया तथा उसमें अपने वीर्य रुप शक्ति का आधान किया।इससे देवता ,असुर,मनुष्य आदि सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ।वह वीर्य जल में गिरने से अत्यन्त प्रकाशमान सुवर्ण अण्ड उत्पन्न हुआ।उस अण्ड के मध्य ब्रह्मा जी उत्पन्न हुऐ।
नर(भगवान)से जल की उत्पत्ति हूई,इसलिऐ जल को नार कहते हैं।वह नार जिसका पहले अयन हुआ,उसे नारायण कहते हैं।वे सदसद्रूप,नित्यकारण और अव्यक्त हैं,इनसे जिस पुरुष विशेष की सृष्टि हुऐ ,उन्हें ब्रह्मा जी कहते हैं।
ब्रह्मा जी ने दीर्घकाल तक तपस्या की और उस अण्ड के दो भाग कर दिऐ।एक भाग से भूमि और दूसरे भाग से आकाश की रचना की।मध्य मे स्वर्ग ,आठों दिशाऐं,वरुण का निवास समुद्र बनाया।फिर महद आदि तत्व तथा सभी प्राणियों की रचना की।
परमात्मा ने सर्वप्रथम ने आकाश को उत्पन्न कियाऔर फिर क्रम से वायु,अग्नि, जल और पृथ्वी-इन तत्वों की रचना की। सृष्टि के आदि मे ही ब्रह्मा जी ने उन सबके नाम और कर्म (वेद के अनुसार )निर्धारित कर दिऐ।
ब्रह्मा जी के मुख से चारों वेद प्रकट हुऐ।पूर्व मुख से ऋग्वेद प्रकट हुआ जिसे वशिष्ट ने ग्रहण किया,
दक्षिण मुख से यजुर्वेद को याज्ञवल्क्य ने ,पश्चिम मुखे प्रकट सामवेद को गोतम ऋषि ने और उत्तरमुख से प्रकट अथर्वेद को लोकपूजित शौनक मुनि ने ग्रहण किया।ब्रह्मा जी के पंचम मुख से इतिहास,पुराण आदि शास्त्र प्रकट हुऐ।
इसके बाद उन्होंने मनु और शतरुपा को उत्पन्न किया और फिर विराट पुरुष की सृष्टि की ।इस पुरुष ने तपस्या की और दस ऋषियों (प्रजापति)को उत्पन्न किया,उनके नाम इस प्रकार हैं-
नारद,भृगू,वशिष्ट,प्रचेता,पुलह,क्रतु,पुलस्त्य,अत्रि,अंगिरा और मारीचि
इसके बाद श्री ब्रह्मा जी ने अन्य ऋषि ,छोटे बडे़ सभी जीव,ग्रह ,उपग्रह,नक्षत्र ,उल्का पिण्ड आदि सभी की सृष्टि की।इस प्रकार से उन भुवन भास्कर ने सारु त्रिलोकी की रचना की।
जब वह परमात्मा निद्रा का आश्रय ग्रहणकर शयन करता है
,तब यह संसार उसमे लीन हो जाता है और जब जागता है तब सब सृष्टि उत्पन्न होती है।और समस्त जीव पूर्वकर्मानुसार अपने अपने कर्मों में प्रवृत हो जाते हैं।वह अव्यय परमात्मा जाग्रत और निद्रा अवस्था द्वारा बार-२ जगत को उत्पन्न और नष्ट करता रहता है।
परमेश्वर कल्प के प्रारम्भ में सृष्टि और कल्प के अन्त में प्रलय करते हैं।।इस कारण उनके दिन में सृष्टि और रात्रि में प्रलय होती है।
कालगणना की चर्चा फिर कभी।।
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