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जानिए हनुमान की उत्पत्ति कैसे हुई?

 बजरंगबली ,पवन पुत्र  ,संकटमोचन ,अंजनीलाल एवम् रामदूत के नाम से विख्यात हनुमान जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। 



शास्त्रों के अनुसार  शिव के ११वें रूप जो सारी सृष्टि का संहार करने के कारण कालाग्निरुद्र कहे जाते है,उन्होंने ही  हनुमान रूप में रामकाज हेतु अवतार धारण किया।

 स्वयं जानकी माता ने उन्हें अजर तथा  अमर  होने का वरदान दिया था।

उनके रोम रोम में सिया राम बसे हुए हैं,यह बात उन्होंने राम दरबार में अपनी छाती चीरकर  विभीषण ,अंगद ,जामवंत आदि को प्रूफ करके दिखाया था। 

शिव पुराण के अनुसार -

समुद्र मंथन के बाद जब रूद्र देव ने श्री विष्णु से उनके मोहिनी रूप का दर्शन कराने को कहा था ,तो फिर भगवान ने उन्हें अपने  मोहिनी रूप के दर्शन दिए।

 जब रूद्र को श्री विष्णु के मोहिनी रूप के दर्शन हुए,तो वह उनके सुंदर रूप को देखकर मोहित हो गए और वह मोहिनी के पीछे पीछे भागे ।रास्ते में रामकाज हेतु उनके तेज का पतन हुआ।उस तेज को शिव प्रेणना से  ऋषि मुनियों ने पत्रपुटक में एकत्रित कर लिया ।

बाद में इसी तेज को उन्होंने गौतम कन्या अंजनी में कान के रास्ते स्थापित कर दिया।तब समय आने पर उसी गर्भ से महान बल शक्ति से सम्पन्न महादेव वानर शरीर धारण करके  उत्पन्न हुए।उस समय उनका नाम हनुमान रखा गया।



जब वह शिशु ही थे ,तो उन्होंने उदित होते सूर्य को फल समझकर निगल लिया बाद में देवी देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्होंने बलवान सूर्य देव को उगल दिया।

तब सभी देवताओं ने उन्हें शिव का अवतार जान अनेक आशीर्वाद दिए।

इसके बाद वह हर्षित होकर अपनी माता के पास लौट आए ,इसके बाद वह रोज ही सूर्य देव के पास जा उनसे ज्ञान प्राप्त करने लगे ,उन्होंने सूर्य देव से सारी विद्या को सीख लिया।

तब वह माता वा सूर्यदेव की आज्ञा से सुग्रीव के पास चले गए।

यह अवतार भगवान श्री राम के कार्यों में मदद करने हेतु श्री शिव जी द्वारा लिया गया था।


हनुमान जी ने अर्जुन ,भीम आदि के गर्व को दूर किया था एवम् महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ पर अदृश्य रूप से स्थित होकर उनको कई घातक बानो से बचाया था।



सो आइए हम सब उनके नाम का जय जय घोष करें।

बोलिए पवन पुत्र हनुमान की जय।

एवम् अपना मन श्री हनुमान में लगाएं ताकि हमें राम दर्शन हो सकें।



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