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What are the social principal of Brahma society?
Brahma society - 1828(कलकत्ता) में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्मा समाज की स्थापना की गई।
हिंदू धर्म में सुधार करने तथा एकेश्वरवाद का प्रचार करने के लिए इसकी स्थापना राजा राम मोहन राय द्वारा की गई। मुख्यता ज्ञान वेद एवं उपनिषदों पर आधारित था।
राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का जनक और आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है उनके द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज हिंदू धर्म का पहला सुधार आंदोलन था जो की आधुनिक पाश्चात्य विचारों पर आधारित था।
ब्रह्म समाज के अनुसार ईश्वर एक है और सभी सद्गुणों का केंद्र बा भंडार है परंतु परमात्मा निर्गुण एवं निराकार है वह ना कभी जन्म लेता है और ना कभी मरता है वह सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान है,संपूर्ण सृष्टि का पालनकर्ता व अमर है अत: मूर्ति पूजा अनावश्यक है।
इसमें मूर्ति ,चित्र तथा पेंटिंग की पूजा करने की अनुमति नहीं थी।
निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास उनका प्रमुख उद्देश्य था।
इन्होंने सर्व धर्म समभाव पर वल दिया।
अर्थात सभी धर्मों में सत्य निहित है अत: व्यक्ति को अपने धर्म के साथ सभी धर्मों का आदर करना चाहिए।यह नैतिकता पर वल देने बाला वर्ग था ,कर्म फल पर विश्वास था।
ब्रह्म समाज का योगदान -
१. बहुदेव वाद तथा मूर्ति पूजा का विरोध।
२.बहुपत्नी एवम् सती प्रथा का विरोध।
३. विधवा विवाह का समर्थन एवम् बाल विवाह का विरोध।
४.नैतिकता पर बल ,कर्मफल में विश्वास ,सर्वधर्म समभाव,निर्गुण ब्रह्म की उपासना ।
५.धार्मिक किताबों ,पुरुषों एवम् वस्तुओं की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था।
६.छुआछूत ,अंध विश्वास ,जातिगत भेदभाव का विरोध।
७.बंगला ,एवम् अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार प्रसार करना ।
८.इसमें हिंसा को स्थान नहीं था।
राजा राममोहन राय के बाद इसकी बागडोर महर्षि देवेन्द्र नाथ ने संभाली, उन्होंने ब्रह्म समाज को न्यू चेतना वा न्यू स्वरूप दिया
फिर 1858 में केशव चन्द्र सेन को ब्रह्म समाज का उत्तर दायित्व दिया गया।
केशव चन्द्र सेन के प्रयास के फलस्वरूप अब इसकी शाखायें बंगाल से बाहर संयुक्त प्रांत,मद्रास ,एवम् पंजाब में खुल गईं
परन्तु इनके उदार विचारों की वजह से देवेन्द्र नाथ टैगोर से इनके मतभेद हो गए
मतभेद की वजह समाज में सभी धर्मों की शिक्षा ,अंतरराष्ट्रीय विवाह एवम् समाज के अंतरराष्ट्रीयकरण पर वल देना था।
फलस्वरूप 1865 सेन को आचार्य की पदवी से बर्खास्त कर दिया गया।
जिससे उन्होंने 1866 में भारतीय ब्रह्म समाज का गठन किया।
तब देवेंद्रनाथ के ब्रह्म समाज को आदि ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया।
बाद में केशव चन्द्र सेन ने साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की ।
पंजाब में दयाल सिंह ने इस समाज के प्रसार का बीड़ा उठाया एवम् पंजाब में (लाहौर)दयाल सिंह कॉलोज की स्थापना की।
ब्रह्म समाज का महत्व -
नारी उत्थान हेतु कार्य किए जैसे सती प्रथा ,परदा प्रथा, को हटाने हेतु प्रयास किया
विधवा पुनर्विवाह का समर्थन ,बालविवाह का विरोध किया।
समाज में व्याप्त जाति प्रथा एवम् छूआ छूत का विरोध किया।
ब्रह्म समाज का समाज में सुधार हेतु किए गए कार्य स्मरणीय रहेंगे।
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