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आखिर अक्षरातीत श्रीकृष्ण को इस जगत में क्यों आना पड़ा?, परमेश्वर को इस मृत्युलोक में क्यों आना पड़ा?
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आखिर अक्षरातीत श्रीकृष्ण को इस जगत में क्यों आना पड़ा?, परमेश्वर को इस मृत्युलोक में क्यों आना पड़ा?
यह जो प्रश्न है इसका बिल्कुल सटीक उत्तर महेश्वर तंत्र से प्राप्त हो जाता है।यह एक संस्कृत भाषा में लिखित शास्त्र है।यह एक बड़ा दुर्भाग्य है कि ईश्वर श्री कृष्ण से सम्बंधित दिव्य ज्ञान की चर्चा निजानंद सम्प्रदाय के अतिरिक्त अन्य कोई करता हो।।
श्री कृष्ण का दिव्य धाम ब्रह्मपुर है जिसकी वास्तविक स्थिति त्रिपाद विभूति से परे अमृत सागर के मध्य स्थित मणिद्वीप में है।अमृत सागर का विस्तार कोटि योजन में है।मणिद्वीप धाम में यमुना नदी बहती है,इस नदी के एक किनारे पर अक्षर ब्रह्म का धाम है तो दूसरी ओर श्रीकृष्ण का दिव्य ब्रह्मपुर धाम। उपर्युक्त यमुना नदी पुखराज पर्वत से निकलती है तथा श्री कृष्ण महल के सामने से बहती हुई अमृत सागर में समा जाती है।नदी के तट रत्न मय हैं तथा अक्षरातीत महल के चारों तरफ दिव्य वृंदावन बगीचा है उससे आगे यमुना नदी। यमुना नदी के अनुदित ही दिव्य वन हैं उनमें से कुछ नाम इस प्रकार से हैं। जैसे चंद्रमास, आनंद कानन, हेमकूट,तारकूट,नीलकानन, निकुंज आदि। श्री कृष्ण प्रियाओं की मुख्य संख्या १२००० है । परमधाम में कुल 18 अध्याय विमान हैं। दिव्य ब्रह्मपुर धाम में
एक बार श्री कृष्ण ने अपनी सखियों को अक्षर ब्रह्म (सामने के महल में रहते हैं) के बारे में बताया कि यह प्रभु ब्रह्माण्ड बनाते ब नष्ट करते हैं। अक्षरात्मा भगवान लीला का सृजन करते हैं।
तब उन सखियों ने उस ब्रह्माण्ड में दुख दर्शन की इच्छा जताई परन्तु श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि यहां सुख ही सुख है अर्थात आनंद समुद्र हैं और वहां दुख ही दुख है।
तुम वहां जाओगी तो मुझे भूल जाओगी यह सम्भव नहीं है कि तुम मुझे भी याद रखो और संसार देखो।
तब उन कृष्ण प्रियाओं ने कहा कि भगवान्! हमने कभी उन लीलाओं को अनुभव नहीं किया और फिर बिना दुख अनुभव के सुख का महत्व नहीं समझ आता अतः नाथ आप हमारी इच्छा पूरी करें।
तब श्री भगवान ने उनकी वह इच्छा स्वीकार कर ली।
उन पुरुषोत्तम भगवान और सखियों की आत्माएं ब्रज में उत्पन्न हुई।
श्रीकृष्ण नंद पुत्र हुए और उन सखियों में प्रमुख श्यामा जी(श्रीकृष्ण का अर्ध अंग ) वृषभानु की पुत्री राधा हुईं।अक्षर ब्रह्म ने भी उत्तम पुरुष श्रीकृष्ण की लीला देखने की इच्छा व्यक्त की थी और कृष्ण सखियों की दुख दर्शन की लालसा थी। अतः स्वयं मूल परमेश्वर को इस भूमण्डल पर आना पड़ा।।
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