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मोक्ष मार्ग का वर्णन,महानारायण उपनिषद रहस्य वर्णन, त्रिपाद विभूति वैकुंठ धाम में नारायण की स्थिति का वर्णन

 जय श्री हरि।

आज हम महत्वपूर्ण ज्ञान पर चर्चा करने वाले हैं।महानारायण उपनिषद में मोक्ष मार्ग एवं उसकी प्राप्ति का वर्णन है।

सृष्टि पूर्व एकमात्र पूर्ण परमात्मा श्री नारायण ही थे उनके अलावा कुछ भी नहीं था।उन ईश्वर ने स्वयं को चार अंशों में प्रकट किया।सबसे निचला अंश पाद विभूति कहा जाता है,पाद विभूति में असंख्य ब्रह्माण्ड स्थित हैं।पाद विभूति से ऊपर आकाश में विरजा नदी है ।इस नदी के उस पार तीन अंश और हैं ,यह तीनों अंश नित्य, अमृत और शाश्वत हैं।

यह तीनों अंश ही मोक्ष स्थान हैं। इनके नाम  विद्या आनंद एवं तुरीय अंश हैं। इनमें असंख्य दिव्य लोक स्थित हैं।

यह तो सार ज्ञान है।

चलिए हम मोक्ष मार्ग का वर्णन करते हैं।

मोक्ष मार्ग का वर्णन --------_----------

जय श्री हरि। (महानारायण उपनिषद)

जब पवित्र आत्मा को शरीर छोड़ने की इच्छा होती है तब श्री हरि के पार्षद उसके पास आते हैं। वह योग द्वारा निज शरीर का त्याग कर श्री विष्णु का स्वरूप प्राप्त कर लेता है एवं गुरु की आज्ञा से गरुण पर आरूढ़ हो तथा पार्षदों से घिरा हुआ आकाश में ऊपर की ओर जाता है।मोक्ष मार्ग


सत्य लोक, ईशान कैवल्य,ग्रह मण्डल एवं सप्तर्षि मण्डल 

इसके बाद चंद्र तथा सूर्य मण्डल का भेदन कर 

ध्रुव मण्डल  तथा शिशुमार चक्र के मध्य महाविष्णु की आराधना एवं उनसे पूजित होकर शिशुमार चक्र का भेदन कर जाता है।

तब वैकुंठ वासी पार्षद उसके पास आते हैं उन सबकी पूजा करके तथा पूजित होकर विरजा नदी को प्राप्त करता है।

उसके बाद ब्रह्म आनंद वैकुंठ धाम में आदि नारायण का पूजन आराधना करता है।

उनसे आज्ञा लेकर और ऊपर -२ जाकर पांचों वैकुण्ठों को पार करके अण्ड विराट के कैवल्य पद को पाकर परमानंद को प्राप्त करता है।

इसके बाद ब्रह्माण्ड को पार कर जाता है। अण्ड की भित्ति सवा करोड़ योजन विशाल है प्रत्येक आवरण उतना ही विशाल है। चारों ओर से ब्रह्माण्ड का प्रमाण दो खरब योजन है। श्री नारायण की खेलने की गेंद के समान है। भू,जल, अग्नि, वायु, आकाश,

महत् , अहंकार एवं मूल प्रकृति से घिरा है।

इसके चारों ओर ऐसे ही असंख्य ब्रह्माण्ड प्रकाशित हैं। प्रत्येक ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि ईश्वर हैं जो क्रमशः सृष्टि रचना, पालन पोषण और संहार का कार्य करते हैं।

महाविष्णु के एक -२ रोमकूपों में अनंत कोटि ब्रह्माण्ड घूमते रहते हैं। ब्रह्म ज्ञान द्वारा सबको पार कर तथा अपरिछिन्न तम सागर को पार करके तथा महामाया के पुर को देखकर तथा उनकी  आज्ञा से ओर ऊपर -२ जाकर महाविराट पद को प्राप्त करता है।।

महाविराट स्वरुप कैसा है

समस्त अविद्या पाद ही विराट है सब ओर मुख वाला, सब ओर नेत्र तथा पैर वाला है,वह अकेले ही स्वर्ग और पृथ्वी को उत्पन्न करता है। इसका रुप दृष्टि में नहीं ठहरता। नेत्रों से देखा नहीं जा सकता

मन, बुद्धि व ह्रदय से ध्यान किया जाता है। महाविराट पुरुष से 

आज्ञा लेकर और ऊपर जाकर महा योगमाया के दिव्य धाम को देखकर परमानंद को प्राप्त करता है। योगमाया का पूजन करके

तथा आज्ञा लेकर ऊपर -२ जाकर पाद विभूति वैकुंठ को पाता है।पाद विभूति वैकुंठ धाम बड़ा ही मनमोहक तथा चारों ओर अमृत सागर से घिरा है। वहां चिदानंद पर्वत के मध्य विमान पर आसन पर विराजमान श्री नारायण से आज्ञा लेकर अविद्या पाद को पार कर अविद्या एवं विद्या पाद की संधि पर स्थित विक्ससेन वैकुंठ धाम में पहुंचता है। कल्याण पर्वत पर आनंद विमान पर विराजमान महाविष्णु स्वरुप विक्सेन से आज्ञा लेकर ऊपर जाकर विद्या पाद को प्राप्त करता है। वहां अनन्त वैकुंठ धाम को देखकर  आनंद पाता है। इसके बाद

विद्यामय अनंत सागरो को पारकर ब्रह्म विद्या नदी में स्नान कर दिव्य अमृत देह पाता है।

इसके बाद ब्रह्म विद्या वैकुंठ धाम में प्रवेश कर लक्ष्मी जी के साथ ऊपर जाकर ब्रह्म विद्या तट पर अनंत आनंद वैकुंठ धाम को देखकर आनंद पाता है।

उसके बाद अनंत ज्ञानानन्द सागरो को तथा वनों को पार कर

तुलसी वैकुंठ में प्रवेश कर आनंद पाता है एवं आज्ञा लेकर ऊपर-२ जाकर परमानंद नदी के किनारे पहुंचता है।

वहां चारों ओर अनंत वैकुण्ठों को देखकर परमानंद प्राप्त करता है।आनंद सागरों को , वनों पर्वतों को पारकर   विद्या -आनंद पाद की संधि पर पहुंचता है तथा वहां आनंद नदी में स्नान करता है

तथा वहां से बोधानंदमय वैकुंठ धाम में प्रवेश करता है।यही ब्रह्म विद्या पाद का वैकुंठ है। जो तुम हो,वही मैं हूं इस तत्व का प्रत्यक्ष अनुभव कराकर 

वहां आदिनारायण उस हंस आत्मा(विष्णु स्वरूप आत्मा) को मोक्ष साम्राज्य का शासन सौंपकर उसी में अंतर्हित हो जाते हैं। 

इससे आगे वह आनंद पाद के मध्य स्थित त्रिपाद विभूति महावैकुण्ठ में प्रवेश करता है।

वही अबाधित परम तत्व है,वही सत ,चित और आनंद है ,वही अद्वितीय परब्रह्म परमेश्वर का विहार मण्डल है।

वही स्थान समस्त योगनिष्ठों द्वारा चाहा जाता है। वहां  बहुत विस्तृत आसन पर सूर्य चंद्रमा और फिर अग्नि का मण्डल है दिव्य तेजोराशि के बीच शेषनाग जी दश हजार फणों का छत्र है तथा शेषनाग की मणियों से प्रकाश ही प्रकाश व्याप्त है।

उन शेष जी गोद में महानारायण लेटे हुए हैं।

शंख, चक्र,गदा आदि आयुध मूर्तमान होकर प्रभु स्तुति कर रहे हैं।

सुंदर श्यामल विग्रह तथा पीताम्बर धारी श्री भगवान के गले में दिव्य कौस्तुभमणि आदि आभूषण तथा वनमाला  है।

चेहरे पर मंद मुस्कान तथा मस्तिष्क पर दिव्य मुकुट , कानों में कुण्डल शोभित हैं।

 शायद अनंत कोटि सूर्य एवं चंद्र का प्रकाश उन प्रभु के एक नख के तुल्य हो। दिव्य कल्पवन के पुष्प रस की एवं असंख्य अमृत झरने की वर्षा हो रही है।

ऐसे महानारायण परब्रह्म का रहस्यमय कैवल्य रुप हैं।

गीता एवं वेदों में जो परमेश्वर को कवि शब्द से सम्बोधित किया गया है ,महानारायण उपनिषद में भी बहुत बार त्रिपाद विभूति नारायण को कवि कहा गया है।

यही वास्तविक परमेश्वर हैं ,यही तामस अंधकार से परे आदित्य के समान महापुरुष हैं।

जिनकी सुंदरता तथा ऐश्वर्य आदि के लिए शब्द नहीं है।

जो आनंद पाद के मध्य त्रिपाद विभूति वैकुंठ धाम में हजारों फणवाले शेषनाग की गोद में विराजते हैं।

जिनसे स्थूल महाविराट प्रकट होकर असंख्य कोटि जगतों की सृष्टि करते व संहार करते हैं।

वेदांत में त्रिपाद विभूति नारायण को ही परमेश्वर घोषित किया गया है।

नोट- ब्रह्म विद्या,आनंद एवं तुरीय पाद के अनंत कोटि दिव्य‌ लोक मन ,वाणी से परे हैं।

वहां महानारायण को जब देखता है तब देखता ही रह जाता है।

प्रभु की कृपा से परमानंद स्वरुप हो जाता है।

एवं सदा के लिए वहां ब्रह्म आनंद अवस्था में रहता है।

इस चतुष्पाद विभूति का वर्णन मुण्डक उपनिषद, पद्म पुराण एवं ऋग्वेद में है।

अतः सत्य ज्ञान है।

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
Aap yah Gyan kin shaastro se prapt karte hain
Sandeep sihare ने कहा…
महानारायण उपनिषद पर आधारित लेख था।यह उपनिषद सभी उपनिषदों और पुराणों का सार है।