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दुर्गा देवी का मणिद्वीप लोक ,मणिद्वीप वर्णन, पराशक्ति का वर्णन


जय श्री हरि।

जिस प्रकार श्री नारायण का लोक वैकुंठ,शिव का लोक कैलाश , ब्रह्मा का ब्रह्म लोक है उसी तरह जगत जननी पराशक्ति दुर्गा का भी सर्वलोक नामक अपना लोक है।

ब्रह्मलोकादूर्ध्वभागे सर्वलोकोऽस्ति यः श्रुतः ।
मणिद्वीपः स एवास्ति यत्र देवी विराजते ॥ 


यह लोक सबसे श्रेष्ठ है फिर चाहे वैकुंठ धाम अथवा गोलोक भी क्यों न हो?

 सर्वलोक ही मणिद्वीप कहा जाता है।यह दिव्य लोक जगदम्बा अर्थात महामाया की भक्ति करने से प्राप्त होता है।तो चलिए मणिद्वीप के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।

(देवी भागवत पुराण स्कंध-१२)

ब्रह्मलोक के ऊपर के भाग में बिना किसी आधार के सर्वलोक स्थित है। सृष्टि के आरम्भ में पराशक्ति ने अपनी इच्छा से इसका निर्माण किया था।सर्वलोक ही मणिद्वीप नाम से विख्यात है।

यह धाम वैकुंठ, कैलाश और यहां तक कि बेहद मण्डल से भी श्रेष्ठ है यही कारण है कि मणिद्वीप को सर्वलोक कहा जाता है।

मणिद्वीप को घेरकर हजारों योजन विस्तार में अमृत सागर स्थित है, परिमाण में हजारों योजन गहरा है।।


अवश्य जानिए श्री नारायण किसकी पूजा करते हैं?

अमृत सागर में ध्वजाओं से युक्त पोत अर्थात हवाई जहाज हैं। इसके चारों ओर रत्नमय वृक्ष लगे हैं।

सर्वप्रथम उत्तर की ओर लोहे का परकोटा है जिसमें प्रवेश हेतु चार दरवाजे हैं इसमें विभिन्न ब्रह्माण्डों से आने वाले देवगणों के विमान,रथ रखे जाते हैं।

लोहे के परकोटे के बाद कांसा फिर तांबा,सीसा,पीतल और रजत आदि परकोटे हैं।

प्रत्येक परकोटे के अंदर की प्रत्येक वस्तु उसी तत्व से निर्मित है।

प्रत्येक दो परकोटों के मध्य बगीचा हैं।

इसके बाद क्रमशः पुष्पराग मणि,पद्मराग मणि आदि स्थित हैं।

गोमेदमणि परकोटा में देवी शक्ति , हीरे के प्रकार में सेवा करने वाली देवियां ,वैदूर्यमणि परकोटा‌ में इंद्राणी, ब्रह्माणी, वैष्णवी,वाराही , महेश्वरी आदि शक्ति,

इंद्रनील मणि परकोटा -उमा, सरस्वती, दुर्गा, लक्ष्मी आदि शक्ति, 

मोती परकोटा,प्रवालमणि परकोटा

इससे आगे नौ रत्नों से निर्मित परकोटा है जहां श्री देवी के सभी अवतार रहते हैं।

आगे चिंतामणि भवन है।

चिंतामणि प्राकार में प्रत्येक वस्तु इसी तत्व से बनी है।

जैसे - वृक्ष, पर्वत, पहाड़,आदि।

 जिसमें चार मण्डप हैं प्रत्येक मण्डप को घेरकर बगीचा है।

श्रृंगार, मुक्ति , ज्ञान और एकांतप मण्डप है।

मुक्ति मण्डप में भगवती भक्तों को मुक्ति देती हैं , ज्ञान मण्डप में ज्ञान और एकांतप मण्डप में जगत की रक्षा हेतु मंत्रियों से चर्चा करती हैं।

देवी के निकट स्थित शंख और पद्म निधि से 

नदियां निकलती हैं जैसे

नवरत्न वहा,सप्तधातुवहा ,कंचनधातुवहा । वहां हजारों नदियां, पर्वत ,वन तथा सरोवर स्थित हैं।

मणिद्वीप की प्रजा बडे सुख से रहा करती है।

न रोग,जन्म और मृत्यु , बुढ़ापा आदि कुछ भी नहीं होते ।

आकाश में मणिद्वीप का प्रकाश दस हजार योजन तक फैला हुआ है। करोड़वें अंश का करोड़वें अंश करने पर भी मणिद्वीप जैसा प्रकाश नहीं है।

यह स्वप्रकाशित लोक है।ऐसे -२ पदार्थ हैं जिनका प्रकाश करोड़ों सूर्यों की तरह है। वहां न सूर्य प्रकशित है और न चंद्र तथा न ही अग्नि ही। मोती माणिक्य से निर्मित है।

मणिद्वीप के पूर्व में अमरावती पुरी, अग्नि कोण में अग्नि पुरी, दक्षिण में यमपुरी, पश्चिम में वरुण लोक, उत्तर में यक्ष लोक, ईशान कोण में रुद्र लोक है।

पराशक्ति चिंतामणि भवन में दिव्य रत्नमय सिंहासन पर भगवान भुवनेश्वर महादेव के साथ विराजती हैं।मां भगवती

इच्छा, क्रिया और ज्ञान शक्ति से पूर्ण तथा परा शक्ति हैं।

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