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श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता, मंगल दाता एवं प्रथम पूज्य देव कहा जाता है। श्री गणेश
शिव और माता पार्वती की दूसरी संतान हैं।उनसे पहले के कार्तिकेय हैं,जिन्होंने
तारकासुर का बध किया था।श्री गणेश का जन्म भद्र मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि में हुआ था।गणेश उत्सव की शुरुवात महाराष्ट्र में तिलक साहब ने की थी।गणेश उत्सव का त्योहार ११दिनों तक चलता है ,फिर श्री गणेश को भक्ति भाव से जल में विसर्जित कर दिया जाता है।जो भी प्राणी श्री गणेश का भक्ति भाव से पूजन करते हैं,उनमें चित् लगाते हैं,उनके सारे संकट दूर हो जाते हैं और वह श्री गणेश के कृपा पात्र होते हैं।
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार स्वामी कार्तिकेय नारायण के
अंश से तथा श्री गणेश गोलोक नाथ के अंशभूत हैं। मंगलकर्ता गणेश के जन्म की कथा बड़ी
रोचक है।उनके जन्म की कथा पुराणों में भिन्न-२ हैं।
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार
माता पार्वती के पुण्यक व्रत के परिणामस्वरूप उन्हें गणेश की प्राप्ति हुई अर्थात
श्री कृष्ण अपने अंश से पुत्र रूप में शिव शिवा को प्राप्त हुए।
इसे पढ़ें -
गणेश जी की जन्म कथा क्या है? अर्थात गणेश की उत्पत्ति कैसे हुई ? गणेश शनिदेव की क्रूर दृष्टि का शिकार कैसे हुए?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर एक एक कर पता करते हैं।
शिव पुराण अनुसार
देवी दुर्गा अर्थात शिवा देवी ने अपनी सखी जय और विजया से प्रेरित होकर अपने मैल वा
उबटन से एक विग्रह का निर्माण किया एवम् अपनी शक्ति से उस विग्रह में प्राणों का
संचार किया ,सो इस प्रकार उन्होंने गणेश को बनाया।जो केबल उन्हीं की आज्ञा मानने वाला था।
वाराह पुराण में गणेश के जन्म की
कथा इस प्रकार है - एक समय ऋषि - मुनियों तथा देवताओं ने भगवान शिव के सामने अपने
विचार रखते हुए कहा कि हे भगवान!अनेक अवसरों पर सज्जनों द्वारा किए गए कामों में
बाधा उत्पन्न हो जाती है एवं दुष्ट पुरुषों द्वारा किए गए कार्य बिना किसी अड़चन के
पूरे हो जाते हैं ,ऐसा न हो इसके लिए कोई उपाय कीजिए।
भगवान शिव ने देवी शिवा की
ओर निर्निमेश नेत्रों से देखा उन परमेश्वर के इस प्रकार देखने पर उनकी मुख्य रूपी
आकाश से एक बालक की उत्पत्ति हुई जो ब्रह्मा जी के समान गुणवान तथा दूसरे रुद्र के
समान ही लग रहा था उसके इस रूप को देखकर देवी पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने
उसको श्राप दे डाला। उन्होंने कहा कि तू गजवक्त्रा(हाथी के सिर वाला) ,प्रलंब
जठर(लंबे उदर बाला) एवम् सर्परूपवीत हो जा। तब रूद्र ने अपने रोमों से कई गजानन
उत्पन्न कर डाले। यह सब देख कर सारे देवी देवता घबडा गए। श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि
सारे देवगण धैर्य धारण करें और रूद्र से कहा कि हे परमेश्वर जो गजानन आपके मुख से
प्रकट हुआ है ,वहीं मुख्य रहे और सारे विनायक उसकी सेवक हो जाए। फिर शिव ने अपने
पुत्र से कहा कि आज से समस्त देवताओं से पहले आपका ही पूजन होगा तथा जो आपका पूजन
नहीं करेगा उसका काम सफल नहीं होगा।इसके बाद सभी देवताओं ने श्री गणेश की स्तुति की
तथा उन्हें भांत-२के आशीर्वाद दिए।
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